ओशो - मन के विचारों को साक्षी भाव से देखो

ध्यान रहे, मनुष्य जितना दुखी होता जाता है। उतना ही मनोरंजन के ज्यादा साधनों की उसे जरूरत होती है। कारण सिर्फ इतना है कि दुखी आदमी अपने भुलाने के लिए कुछ उपाय खोजता है। 

हमें चाहिए कि लोग सुखी हों और सुख में अगर उत्सव मनाएं, गीत गाएं, नाचें, काव्य का रस लें, संगीत का रस लें, तो और बात है। 

Man ko shant kaise kare osho

लेकिन लोग दुखी हों और सिर्फ मलहम-पट्टी की तरह मनोरंजन का उपयोग करें, तो घातक है। उचित नहीं है। अफीम का नशा है। लोगों को अफीम का नशा मत दो। लोगों को जागरण दो, सुलाओ मत।

और हमारी साधारणतः सारी कविताएं सिवाय लोरियों के और कुछ भी नहीं हैं। जैसे छोटे-छोटे बच्चों को हम लोरियां सुना देते हैं और सुला देते हैं।

ऐसे बड़े-बड़े बच्चों को कविताएं सुनाई जा रही हैं, कहानियां सुनाई जा रही हैं, पुराण सुनाए जा रहे हैं, शास्त्र सुनाए जा रहे हैं। सब लोरियां हैं, कि किसी तरह सोए रहो। 

और तुम भी लोरियों की तलाश में हो। तुम भी सांत्वना चाहते हो, सत्य नहीं चाहते। 

मुश्किल से कभी कोई आदमी मिलता है जो सत्य का खोजी है। लोग सांत्वना खोज रहे हैं। लोग चाहते हैं किसी तरह राहत मिल जाए।

किसी भी तरह हो, जीवन में थोड़ी देर के लिए समस्याओं से छुटकारा मिल जाए। मगर समस्याएं अपनी जगह खड़ी रहेंगी। ऐसे समस्याएं छूट नहीं सकतीं। समस्याएं तो मिटती हैं समाधि से। 

उन्हें मिटाने का और न कभी कोई उपाय था, न आज है, न कभी आगे होगा। तुम मन से छूटो तो तुम दुख से छूटो। तुम मन से छूटो तो तुम समस्याओं से छूटो। और मैं मन से छूटने की कला ही सिखा रहा हूं। संन्यास का मेरा अर्थ इतना ही है केवलःमन से छूटो।

अ-मनी अवस्था को अनुभव करो। साक्षी बनो इस मन के-जहां दुख हैं, जहां सुख हैं; जहां हंसी भी है और आंसू भी हैं; जहां सब तरह के द्वंद्व हैं। इन दोनों के साक्षी बनो। 

हंसी आए तो उसे भी जाग कर देखना। रोना आए तो उसे भी जाग कर देखना। और इतना स्मरण रखना निरंतर कि मैं तो वह हूं जो जागा हुआ देख रहा है- न आंसू हूं, न मुस्कुराहट हूं, दोनों का साक्षी हूं। 

इस साक्षीभाव में तुम ठहर जाओ, थिर हो जाओ, इस साक्षीभाव में तुम रम जाओ, तो तुम्हारे जीवन में महारास है! तो तुम्हारे जीवन में फिर दीवाली ही दीवाली है,फाग ही फाग है! फिर तुम्हारा जीवन सावन का महीना है।

फिर डालो झूले, फिर गाओ गीत। फिर तुम्हारे गीतों का रंग और, ढंग और, प्रसाद और, सौंदर्य और! मगर उसके पहले क्या गीत गाओगे? गीत गाने वाली भूमिका कहां है? 

नाचने वाले पैर कहां हैं, हृदय कहां है आत्मा कहां है? ऐसे ऊपर से लीपा-पोती करते रहोगे, कृष्णराज, उससे कुछ लाभ होने का नहीं है।

Source: Osho Hindi Youtube Channel


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