इंसान मरता क्यों है - insaan marta kyu hai

इंसान मरता क्यों है ? यह सवाल हर इंसान के मन में कभी न कभी आया ही होगा। क्या आप जानते है ? इस सवाल का जवाब अगर नहीं तो चलिए में आपको बताता हु। इंसान मरता क्यों है। इस पर धर्म, विज्ञान, के अलग अलग धारणाएं है। जैसे कि कुछ लोग कहते है कि हर इंसान कितना जिएगा यह पहले से लिखा होता है। उसके भाग्य में। जबकि दूसरी तरफ विज्ञान कुछ और ही कहता है। चलिए दोनों पक्षों क्या कहते है समझाता हु।

इंसान क्यों मरता है

धर्म कहता है

इंसान नहीं मरता है - केवल शरीर मरता है - आत्मा अमर है
भागवत गीता में मृत्यु पर एक श्लोक भी है 
"न जायते म्रियते वा कदाचित्"
(आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है)

आदमी का शरीर केवल एक वासना, कर्म और सीखने का जरिया है। जब उसका काम पूरा हो जाता है या उसका संतुलन बिगड़ता है तब आदमी का शरीर नष्ट हो जाता है।

मृत्यु जन्म के साथ ही आती है। मृत्यु जीवन का एक प्राकृतिक हिस्सा है। मृत्यु को ऐसे समझे - एक सिक्के के दो पहलू होते है - पहला जन्म दूसरा मृत्यु। धर्म के हिसाब से मृत्यु अनिवार्य है।

विज्ञान कहता है

विज्ञान के अनुसार, इंसान की मृत्यु के कई कारण है जैसे कि शरीर के हर कोशिका की सीमित उम्र होती है। हर बार जब कोशिका अलग होती है तो उसके DNA के सिरों (Telomeres) की लंबाई छोटी होती जाती है। इससे शरीर बूढ़ा होता जाता है।

शरीर के अंगों का फैल होना भी एक कारण है। उमर बढ़ने, बीमारियों या चोट के कारण शरीर के कुछ मुख्य अंग (जैसे दिल, फेफड़ा, दिमाग, किडनी इत्यादि) काम करना बंद कर देने से भी इंसान की मृत्यु हो जाती है।

रोग और संक्रमण भी एक कारण है। अगर इंसान को कैंसर, हृदय रोग, स्ट्रोक, संक्रमण जैसी बीमारी शरीर के कार्य प्रणाली को गंभीर रूप से प्रभावित करती है। इनमें से कई बीमारियां कोशिकाओं के अनियंत्रित व्यवहार या इम्यून सिस्टम की कमजोरी से होती है।

कुछ बाहरी कारण भी होते है जैसे कि दुर्घटना, सांप का काटना, जलना, गोली लगना, डूबना आदि कारणों से शरीर को नुकसान होता है जिससे अचानक मृत्यु हो जाती है

ओशो के अनुसार

मृत्यु को अंत नहीं है, बल्कि एक बदलाव है जैसे हम पुराने कपड़े बदलते है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को छोड़ देती है। शरीर मरता है, आत्मा नहीं। मृत्यु एक दरवाजा है, जीवन से दूसरे जीवन की और जाने का।

मृत्यु एक उत्सव (celebration) होना चाहिए। ओशो के हिसाब से अगर तुमने जीवन को पूरी तरह से जिया है, तो मृत्यु भी सुंदर होगी।
जिसने जागरूकता से जीवन जिया, उसके लिए मृत्यु कोई डर नहीं, बल्कि पूर्ण विश्राम और समाधि है। उन्होंने मृत्यु को डरने की चीज नहीं, बल्कि स्वीकार और समझने को कहा है।

मृत्यु वह क्षण है जहां "अहंकार" (ego) पूरी तरह गिर सकता है। अगर कोई पूरी सजगता से मरता है, तो वह अंतिम पल मुक्ति (enlightenment) भी हो सकता है। इसलिए ओशो ने कहा है कि मौत को भी ध्यानपूर्वक जियो, उसे दबाओ मत, भागो मत, जागरूक होकर देखो।

निष्कर्ष

धर्म, विज्ञान और ओशो का मृत्यु पर अलग अलग धारणा है। लेकिन बहुत जगह पर यह सभी सहमत भी होते है। जैसे कि मृत्यु निश्चित होगी। उसे कोई टाल नहीं सकता, आप मरने से बच नहीं सकते है जो भी प्राणी इस धरती पर जन्म लेता है वह मरता जरूर है। क्योंकि जीवन और मृत्यु आपस में जुड़े है। दोनों एक है - अलग नहीं

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